लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने की अहमियत
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आज के दौर में इंसानों के दिलों से अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की मुहब्बत कम होती जा रही है और ज़रुरत के रिश्ते बनाने का रिवाज सा चल निकला है | इस समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो दो इंसानों का प्यार उनके अच्छे रिश्ते देख जल जाते हैं जो की इर्ष्या वश होता है और उन्हें फ़िक्र यह सताने लगती है की कैसे उनके रिश्ते खराब किये जाएं ? और पहला मौक़ा मिलते ही ऐसे लोग रिश्तों को ग़लतफ़हमी पैदा कर के बिगाड़ दिया करते हैं | ऐसा यदि कोई मुसलमान करे तो बहुत ही ताज्जुब होता है क्यूंकि इस्लाम में ऐसे इंसान के लिए जन्नत हराम करार दी गए हैं | हजरत मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया जो शख्स किन्ही दो लोगों में झगडे करवाए या उनके रिश्ते ख़राब करे अल्लाह उसपे गज़बनाक होगा और दुनिया और आखिरत में लानत करेगा |
इसका यह मतलब भी नहीं की अगर कोई आपके दोस्तों या रिश्तेदारों के रिश्ते खराब कर वादे या आपस में ग़लतफ़हमी पैदा कर दे तो पूरा इलज़ाम उसी पे रख दिया जाए | रिश्ते खराब करने के ज़िम्मेदार आप खुद भी उतने ही हैं क्यूंकि अल्लाह ने आपको अक्ल दी है और हिदायत की सुनी सुनायी बातों पे यकीन कर के अपने रिश्ते आपस में खराब न करो| और यदि कोई बात हो ही जाए तो कोशिश करो की रिश्ते को फिर से जोड़ने की | हज़रत अली रज़िअल्लाहु अ़न्हु) ने फ़रमाया की ज़िन्दगी के हर मोड़ पे सुलह करना सीखो क्यूंकि झुकता वही है जिसमे जान होती है अकड़ना तो मुर्दों की पहचान है |
इस्लाम की हिदायत यहीं पे ख़त्म नहीं हो जाती की रिश्ते किसी के कान भरने पे न बिगाड़ो या अगर बिगड़ जाए तो सुलह की कोशिश करो बल्कि इस से एक क़दम आगे जा के हिदया देता है की ऐ इंसानों अगर किन्ही दो लोगों में कोई शिकायत पैदा हो जाए और रिश्ते ख़राब हो जाएं तो उनके बीच में सुलह करवा दो और ऐसा करने का सवाब पूरे साल मुस्तहब नमाजें पढने से भी ज्यादा है | इस सवाब से भी इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है की किन्ही दो लोगों में रिश्ते खराब करवाने की सजा कितनी ज्यादा हो सकती है ?
लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने का अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है और अल्लाह के पैग़म्बरों की भी यह ज़िम्मेदारी दी थी कि समाज में मतभेदों को दूर करते हुए शांति बनाए रखें| अल्लाह तआला सूरा-ए-बक़रा की आयत नं 27 में उन लोगों के बारे में जो सम्बंध तोड़ते हैं, फ़रमाता हैः फ़ासिक़ (गुनहगार व भ्रष्ट) वह लोग हैं जो अल्लाह के वचन को पक्का हो जाने के बाद तोड़ते हैं और जिन रिश्तो कों अल्लाह ने मज़बूत बनाए रखने का हुक्म दिया है उन्हें तोड़ते हैं और ज़मीन पर उपद्रव करते हैं, निस्चित रूप से यह लोग घाटा उठाने वालों में से हैं।
रसूले इस्लाम (हजरत मुहम्मद ﷺ) लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने के बारे में फ़रमाते हैं क्या में तुम्हें ऐसी चीज़ के बारे में न बताऊं जो नमाज़, रोज़े और ज़कात से ज़्यादा बेहतर है, और वह काम लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना है, चूंकि लोगों के बीच रिश्तों में दूरी पैदा होना घातक, जानलेवा और दीन से दूरी का कारण बनता है। (कंज़ुलउम्माल 5480, मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि जब लोगों के बीच मतभेद पैदा हो जाये और आपस में दूरियां पैदा हो जाएं, ऐसा सदक़ा है जिसे अल्लाह तआला पसंद करता है।
(अल-काफ़ी 2/209/1,मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।
अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम, अपने बेटे इमाम हसन अ. को सम्बोधित करते हुए फ़रमाते हैं कि मैंने रसूले इस्लाम (हजरत मुहम्मद ﷺ) से सुना है कि लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना एक साल की मुस्तहब नमाज़ों और रोज़ों से बेहतर है।
(नहजुल बलाग़ा वसीयत 47)।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं कि .........अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जो हमारे दो दोस्तो के बीच सुलह सफ़ाई कराए, ऐ मोमिनों आपस में दोस्त रहो और एक दूसरे से मुहब्बत करो।
(उसूले काफ़ी, 72, पोज 187)
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*शेअर करके सद्का ऐ जारिया रवां करने में हिस्सेदार बनें*
*दुआओं में याद रखियेगा*
*Mûhãmmâd ŠhÄhïđ*
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आज के दौर में इंसानों के दिलों से अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की मुहब्बत कम होती जा रही है और ज़रुरत के रिश्ते बनाने का रिवाज सा चल निकला है | इस समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो दो इंसानों का प्यार उनके अच्छे रिश्ते देख जल जाते हैं जो की इर्ष्या वश होता है और उन्हें फ़िक्र यह सताने लगती है की कैसे उनके रिश्ते खराब किये जाएं ? और पहला मौक़ा मिलते ही ऐसे लोग रिश्तों को ग़लतफ़हमी पैदा कर के बिगाड़ दिया करते हैं | ऐसा यदि कोई मुसलमान करे तो बहुत ही ताज्जुब होता है क्यूंकि इस्लाम में ऐसे इंसान के लिए जन्नत हराम करार दी गए हैं | हजरत मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया जो शख्स किन्ही दो लोगों में झगडे करवाए या उनके रिश्ते ख़राब करे अल्लाह उसपे गज़बनाक होगा और दुनिया और आखिरत में लानत करेगा |
इसका यह मतलब भी नहीं की अगर कोई आपके दोस्तों या रिश्तेदारों के रिश्ते खराब कर वादे या आपस में ग़लतफ़हमी पैदा कर दे तो पूरा इलज़ाम उसी पे रख दिया जाए | रिश्ते खराब करने के ज़िम्मेदार आप खुद भी उतने ही हैं क्यूंकि अल्लाह ने आपको अक्ल दी है और हिदायत की सुनी सुनायी बातों पे यकीन कर के अपने रिश्ते आपस में खराब न करो| और यदि कोई बात हो ही जाए तो कोशिश करो की रिश्ते को फिर से जोड़ने की | हज़रत अली रज़िअल्लाहु अ़न्हु) ने फ़रमाया की ज़िन्दगी के हर मोड़ पे सुलह करना सीखो क्यूंकि झुकता वही है जिसमे जान होती है अकड़ना तो मुर्दों की पहचान है |
इस्लाम की हिदायत यहीं पे ख़त्म नहीं हो जाती की रिश्ते किसी के कान भरने पे न बिगाड़ो या अगर बिगड़ जाए तो सुलह की कोशिश करो बल्कि इस से एक क़दम आगे जा के हिदया देता है की ऐ इंसानों अगर किन्ही दो लोगों में कोई शिकायत पैदा हो जाए और रिश्ते ख़राब हो जाएं तो उनके बीच में सुलह करवा दो और ऐसा करने का सवाब पूरे साल मुस्तहब नमाजें पढने से भी ज्यादा है | इस सवाब से भी इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है की किन्ही दो लोगों में रिश्ते खराब करवाने की सजा कितनी ज्यादा हो सकती है ?
लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने का अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है और अल्लाह के पैग़म्बरों की भी यह ज़िम्मेदारी दी थी कि समाज में मतभेदों को दूर करते हुए शांति बनाए रखें| अल्लाह तआला सूरा-ए-बक़रा की आयत नं 27 में उन लोगों के बारे में जो सम्बंध तोड़ते हैं, फ़रमाता हैः फ़ासिक़ (गुनहगार व भ्रष्ट) वह लोग हैं जो अल्लाह के वचन को पक्का हो जाने के बाद तोड़ते हैं और जिन रिश्तो कों अल्लाह ने मज़बूत बनाए रखने का हुक्म दिया है उन्हें तोड़ते हैं और ज़मीन पर उपद्रव करते हैं, निस्चित रूप से यह लोग घाटा उठाने वालों में से हैं।
रसूले इस्लाम (हजरत मुहम्मद ﷺ) लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने के बारे में फ़रमाते हैं क्या में तुम्हें ऐसी चीज़ के बारे में न बताऊं जो नमाज़, रोज़े और ज़कात से ज़्यादा बेहतर है, और वह काम लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना है, चूंकि लोगों के बीच रिश्तों में दूरी पैदा होना घातक, जानलेवा और दीन से दूरी का कारण बनता है। (कंज़ुलउम्माल 5480, मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि जब लोगों के बीच मतभेद पैदा हो जाये और आपस में दूरियां पैदा हो जाएं, ऐसा सदक़ा है जिसे अल्लाह तआला पसंद करता है।
(अल-काफ़ी 2/209/1,मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।
अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम, अपने बेटे इमाम हसन अ. को सम्बोधित करते हुए फ़रमाते हैं कि मैंने रसूले इस्लाम (हजरत मुहम्मद ﷺ) से सुना है कि लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना एक साल की मुस्तहब नमाज़ों और रोज़ों से बेहतर है।
(नहजुल बलाग़ा वसीयत 47)।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं कि .........अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जो हमारे दो दोस्तो के बीच सुलह सफ़ाई कराए, ऐ मोमिनों आपस में दोस्त रहो और एक दूसरे से मुहब्बत करो।
(उसूले काफ़ी, 72, पोज 187)
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*शेअर करके सद्का ऐ जारिया रवां करने में हिस्सेदार बनें*
*दुआओं में याद रखियेगा*
*Mûhãmmâd ŠhÄhïđ*
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