★ सच्ची हिकायत (पोस्ट-2)
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★ Bismillah Hir Rahemanir Rahim
••मुकद्दस पानी••
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एक मकाम पर हुजुर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) वुजु फरमाया तो हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) ने वुजू से बचा हुअा पानी ले लिया। दीगर (और दुसरे) सहाबा-ए-किराम ने जब देखा की हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) के पास हुजुर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) के वुजू का बचा हुआ पानी है। तो हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) की तरफ दौड़े और मुकद्दस पानी को हासिल करने की कोशिश करने लगे।जिस किसी को उस पानी से थोड़ा पानी मिलता वह उस पानी को अपने मुंह पर मल लेते। और जिस किसी को न मिल सका तो उसने किसी दुसरे के हाथ से तरी लेकर मुंह पर हाथ फेर लेते।
{मिसकात शरिफ, पेज-65,}
सबक।
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सहाबा-ए-किराम (रदी अल्लाहु अन्हु) को हर उस चीज से जिसे हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) से कोइ निस्बत हासिल हो गई ।
मोहब्बत व प्यार था और उसे वाजिब-ए-ताजीम समझते थे। उस से बरकत हासिल करते थे। मालूम हुआ की तबार्रूक कोइ नयी बात और बिद्दत नही बल्की सहाबा-ए-किराम को भी मालुम था।
ये भी मालुम हुवा की अपने वुजु के बचे हुए पानी को बा-तौर तबार्रूक लेकर अपने चेहरो पर मल लेने का हुक्म हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) ने भी नही दिया मगर सहाबा-ए-किराम फिर भी ऐसा करते थे । उनकी मोहब्बत की वजह से था जो ऐन इमान है।
इसी तरह हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) ने जुलुस, मिलाद, महफिल-ए-मिलाद अजान मे नाम-ए-पाक सुनकर अंगुठे चुमने का हुक्म अगर न भी दिये हो तो भी जो शख्स मोहब्बत की वजह से ऐसा करेगा ईनशाअल्लाह-वा-ताआला सहाबा-ए-किराम के सदके मे सवाब पायेगा।
हम मुहम्मद ﷺ के चाहने वाले हैं.
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★ Bismillah Hir Rahemanir Rahim
••मुकद्दस पानी••
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एक मकाम पर हुजुर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) वुजु फरमाया तो हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) ने वुजू से बचा हुअा पानी ले लिया। दीगर (और दुसरे) सहाबा-ए-किराम ने जब देखा की हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) के पास हुजुर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) के वुजू का बचा हुआ पानी है। तो हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) की तरफ दौड़े और मुकद्दस पानी को हासिल करने की कोशिश करने लगे।जिस किसी को उस पानी से थोड़ा पानी मिलता वह उस पानी को अपने मुंह पर मल लेते। और जिस किसी को न मिल सका तो उसने किसी दुसरे के हाथ से तरी लेकर मुंह पर हाथ फेर लेते।
{मिसकात शरिफ, पेज-65,}
सबक।
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सहाबा-ए-किराम (रदी अल्लाहु अन्हु) को हर उस चीज से जिसे हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) से कोइ निस्बत हासिल हो गई ।
मोहब्बत व प्यार था और उसे वाजिब-ए-ताजीम समझते थे। उस से बरकत हासिल करते थे। मालूम हुआ की तबार्रूक कोइ नयी बात और बिद्दत नही बल्की सहाबा-ए-किराम को भी मालुम था।
ये भी मालुम हुवा की अपने वुजु के बचे हुए पानी को बा-तौर तबार्रूक लेकर अपने चेहरो पर मल लेने का हुक्म हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) ने भी नही दिया मगर सहाबा-ए-किराम फिर भी ऐसा करते थे । उनकी मोहब्बत की वजह से था जो ऐन इमान है।
इसी तरह हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) ने जुलुस, मिलाद, महफिल-ए-मिलाद अजान मे नाम-ए-पाक सुनकर अंगुठे चुमने का हुक्म अगर न भी दिये हो तो भी जो शख्स मोहब्बत की वजह से ऐसा करेगा ईनशाअल्लाह-वा-ताआला सहाबा-ए-किराम के सदके मे सवाब पायेगा।
हम मुहम्मद ﷺ के चाहने वाले हैं.
1 comments:
commentsMasha allah
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