बद_निगाही_के_जिस्म_पर_असरात

#बद_निगाही_के_जिस्म_पर_असरात

निगाहें जिस जगह जाती हैं.. वहीं जमती हैं- फिर उनका अच्छा और बुरा असर आसाब व दिमाग़ और हार्मोन्स पर पड़ता है- शहवत की निगाह से देखने से हार्मोन्स सिस्टम के अंदर खराबी पैदा हो जाती है.. क्यूंकि इन निगाहों का असर ज़हरीली रतूबत इखराज (निकलने) का बाइस बन जाता है और हार्मोन्सिज़ ग्लैंडर ऐसी तेज़ और खिलाफे जिस्म ज़हरीली रतूबतें खारिज करते हैं- जिससे तमाम जिस्मानी निज़ाम दरहम बरहम हो जाता है और आदमी बेशुमार अमराज़ (मर्ज़) में मुब्तिला हो जाता है....
       
            *#देखने_से_क्या_होता_है..?

सिर्फ देखा ही तो है.....ये कौन सा गलत काम किया है? 
तो क्या हमने कभी ये सोचा है कि अचानक अगर शेर या सांप सामने आ जाए तो आदमी सिर्फ देख ले तो सिर्फ देखने से जान पर क्या बनती है?
सब्ज़ा और फूल सिर्फ देखे जाते हैं तो फिर उनके देखने से दिल मसरूर और मुत्मइन क्यूं होता है? 
ज़ख्मी और लहूलुहान को सिर्फ देखते ही तो हैं लेकिन परेशान ग़मगीन और बाज़ बेहोश हो जाते हैं....!
           
                     *#आखिर_क्यूं....?

वाक़ई तजिर्बात के लिहाज़ से ये बात वाज़ेह है कि निगाहों की हिफाज़त ना करने से इंसान डिप्रेशन... बेचैनी और मायूसी का शिकार होता है जिसका इलाज नामुमकिन है क्यूंकि निगाहें इंसान के ख्यालात और जज़्बात को मुन्तशिर (बिखेरती) करती हैं ऐसी खतरनाक पोज़ीशन से बचने के लिए सिर्फ और सिर्फ इस्लामी तालीमात का सहारा लेना पड़ता है....
बाज़ लोगों के तजिर्बात बताते हैं कि सिर्फ तीन दिन निगाहों को शहवानी हरकात.. खूबसूरत चेहरों और इमारतों में लगाएं तो सिर्फ तीन दिन के बाद जिस्म में दर्द.. बेचैनी..थकान..दिमाग बोझिल बोझिल और जिस्म के अंग खिंचे जाते हैं अगर इस कैफियत को दूर करने के लिए सुकून आवर दवाइयां भी इस्तेमाल की जांए तो कुछ वक़्त के लिए और फिर वही कैफियत....
आखिर इसका इलाज निगाहों की हिफाज़त है...

बहरहाल मर्दों और औरतों को इफ्फत और पाक दामनी हासिल करने के लिए बेहतरीन इलाज अपनी नज़रों को झुकाना है.. खासतौर पर इस मुआशरे और गंदे माहौल में बेशर्मी और बेहयाई इस क़द्र आम है कि नज़रों को महफूज़ रखना बहुत ही मुश्किल है...
इससे बचने के लिए ज़ाहिर व अमली शक्ल तो यही है जो क़ुरआन ने हमें बताई है कि:
             "चलते फिरते अपनी निगाहों को पस्त ( झुका कर) रखें और दिल के अंदर अल्लाह का ख़ौफ हो कि अल्लाह मुझे देख रहा है..जिस क़द्र अल्लाह तआला का ख़ौफ ज़्यादा होगा उतना ही हराम चीज़ों से बचना आसान होगा-"
हदीसे पाक में आक़ा करीम ﷺ का इरशाद है कि:
             "आंखें ज़िना करती हैं और उनका ज़िना देखना है-"
जबकि क़ुरआन ए करीम में अल्लाह रब्बुल आलमीन के इरशाद का मफहूम है कि:
              "ज़िना की सोच के क़रीब भी मत जाओ..बेशक ये बहुत ही बुरा रास्ता है-"
अब आप खुद देखें कि जब तक हम देखते नहीं तो सोच कैसे सकते हैं.. इसलिए जब निगाह मुसलसल बुराई दिल में रखकर किसी का पीछा करेगी तो ज़िना का... और ज़िना की सोच का मुआमला दिल में तक़वियत पकड़ेगा...
इसलिए जहां रब्बुल आलमीन ने मुसलमान औरत का पर्दे का हुक्म दिया... वहीं मर्द को भी अपनी निगाहें झुका कर रखने का हुक्म दिया..मज़ीद पहले आयात में किसी को मुखातिब किया गया या बाद की आयत में किसी को हुक्म दिया गया..मर्दो ज़न दोनों इस अख्लाक़ी मुआमले के मुकम्मल ज़िम्मेदार और हुक़ूक़ुल इबाद की मुआशरती (समाजी) सीढ़ी में आते हैं...

            *#बदनज़री_के_तिब्बी_नुक़सानात*
एक बदनज़री से कई मर्ज़ पैदा हो जाते हैं...
अगरचा एक सैकेंड की बदनज़री हो दिल को ज़ोअफ (कमज़ोरी सुस्ती) हो जाता है- 
फौरन कशमकश शुरू हो जाती है कि नहीं?
कभी इधर देखता है कभी उधर देख रहा है कि कोई देख तो नहीं रहा....
इसी कशमकश से क़ल्ब में ज़ोअफ ( सुस्ती) पैदा होता है-
और गंदे ख्यालात से मसाने के ग़ुदूद (जिस्म के अंदर की गांठ) सूज जाती है जिससे उसको बार बार पेशाब आने लगता है...
पेशाब से पहले या बाद में रतूबतों के इखराज का मुआमला पैदा हो जाता है और इंसान को "जिस्मानी दीमक" की बीमारियां लग जाती हैं ऐसे जिस्मानी दीमक की बीमारी के  मरीज़ों की तादाद मर्द और औरत दोनों में ही आजकल बहुत ज़्यादा है.....
इन सब मुआमलात से आसाब (अंग) ढीले हो जाते हैं जिससे दिमाग़ कमज़ोर और निस्यान पैदा हो जाता है....

हर बुराई का सबब इंसान है अल्लाह तआला की हर नाफरमानी से क़ुव्वते दिमाग़ और हाफिज़ा कमज़ोर हो जाता है..
भूलने की बीमारी पैदा हो जाती है और ऐसे इंसान का इल्म भी ज़ाया हो जाता है फिर गुर्दे कमज़ोर होते हैं और बदनिगाही की बुरी आदत में सारे आसाब कमज़ोर हो जाते हैं...
     यूं समझ लीजिए कि ज़लज़ले में क्या होता है..
जब कहीं ज़लज़ला आता है तो इमारत कमज़ोर हो जाती है या नहीं..?
गुनाह नफ्स और शैतान की तरफ से ज़लज़ला होता है.. जो अपने आपको गुनाह से बचाते हैं..वो इस ज़लज़ले से महफूज़ रहते हैं..
अचानक नज़र पड़ी और फौरन हटा ली तो भी दिल में ज़लज़ला आता है झटका लगता है...
मगर गुनाह करने की सोच और बुरी नज़र से बार बार या मुसलसल देखते रहने पर ज़लज़ले की सूरत लानत बरसती है और अल्लाह तआला की तरफ से ज़हनी और दिली बेसुकूनी के अज़ाब के झटके लगते हैं..!!!

*#या_अल्लाह_हमें_बद_निगाही_जैसे_गुनाह_से_दूर_फरमा* ﺁﻣﯿﻦ ۔
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*शेअर करके सद्का ऐ जारिया रवां करने में हिस्सेदार बनें*
*दुआओं में याद रखियेगा*
*Mûhãmmâd ŠhÄhïđ*
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लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने की अहमियत
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आज के दौर में इंसानों के दिलों से अपने रिश्तेदारों और दोस्तों की मुहब्बत कम होती जा रही है और ज़रुरत के रिश्ते बनाने का रिवाज सा चल निकला है | इस समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो दो इंसानों का प्यार उनके अच्छे रिश्ते देख जल जाते हैं जो की इर्ष्या वश होता है और उन्हें फ़िक्र यह सताने लगती है की कैसे उनके रिश्ते खराब किये जाएं ? और पहला मौक़ा मिलते ही ऐसे लोग रिश्तों को ग़लतफ़हमी पैदा कर के बिगाड़ दिया करते हैं | ऐसा यदि कोई मुसलमान करे तो बहुत ही ताज्जुब होता है क्यूंकि इस्लाम में ऐसे इंसान के लिए जन्नत हराम करार दी गए हैं | हजरत मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया जो शख्स किन्ही दो लोगों में झगडे करवाए या उनके रिश्ते ख़राब करे अल्लाह उसपे गज़बनाक होगा और दुनिया और आखिरत में लानत करेगा |

इसका यह मतलब भी नहीं की अगर कोई आपके दोस्तों या रिश्तेदारों के रिश्ते खराब कर वादे या आपस में ग़लतफ़हमी पैदा कर दे तो पूरा इलज़ाम उसी पे रख दिया जाए | रिश्ते खराब करने के ज़िम्मेदार आप खुद भी उतने ही हैं क्यूंकि अल्लाह ने आपको अक्ल दी है और हिदायत की सुनी सुनायी बातों पे यकीन कर के अपने रिश्ते आपस में खराब न करो| और यदि कोई बात हो ही जाए तो कोशिश करो की रिश्ते को फिर से जोड़ने की | हज़रत अली रज़िअल्लाहु अ़न्हु) ने फ़रमाया की ज़िन्दगी के हर मोड़ पे सुलह करना सीखो क्यूंकि झुकता वही है जिसमे जान होती है अकड़ना तो मुर्दों की पहचान है |

इस्लाम की हिदायत यहीं पे ख़त्म नहीं हो जाती की रिश्ते किसी के कान भरने पे न बिगाड़ो या अगर बिगड़ जाए तो सुलह की कोशिश करो बल्कि इस से एक क़दम आगे जा के हिदया देता है की ऐ इंसानों अगर किन्ही दो लोगों में कोई शिकायत पैदा हो जाए और रिश्ते ख़राब हो जाएं तो उनके बीच में सुलह करवा दो और ऐसा करने का सवाब पूरे साल मुस्तहब नमाजें पढने से भी ज्यादा है | इस सवाब से भी इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है की किन्ही दो लोगों में रिश्ते खराब करवाने की सजा कितनी ज्यादा हो सकती है ?
लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने का अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है और अल्लाह के पैग़म्बरों की भी यह ज़िम्मेदारी दी थी कि समाज में मतभेदों को दूर करते हुए शांति बनाए रखें| अल्लाह तआला सूरा-ए-बक़रा की आयत नं 27 में उन लोगों के बारे में जो सम्बंध तोड़ते हैं, फ़रमाता हैः फ़ासिक़ (गुनहगार व भ्रष्ट) वह लोग हैं जो अल्लाह के वचन को पक्का हो जाने के बाद तोड़ते हैं और जिन रिश्तो कों अल्लाह ने मज़बूत बनाए रखने का हुक्म दिया है उन्हें तोड़ते हैं और ज़मीन पर उपद्रव करते हैं, निस्चित रूप से यह लोग घाटा उठाने वालों में से हैं।

रसूले इस्लाम (हजरत मुहम्मद ﷺ) लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने के बारे में फ़रमाते हैं क्या में तुम्हें ऐसी चीज़ के बारे में न बताऊं जो नमाज़, रोज़े और ज़कात से ज़्यादा  बेहतर है, और वह काम लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना है, चूंकि लोगों के बीच रिश्तों में दूरी पैदा होना घातक, जानलेवा और दीन से दूरी का कारण बनता है। (कंज़ुलउम्माल 5480, मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि जब लोगों के बीच मतभेद पैदा हो जाये और आपस में दूरियां पैदा हो जाएं, ऐसा सदक़ा है जिसे अल्लाह तआला पसंद करता है।

(अल-काफ़ी 2/209/1,मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।

अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम, अपने बेटे इमाम हसन अ. को सम्बोधित करते हुए फ़रमाते हैं कि मैंने रसूले इस्लाम (हजरत मुहम्मद ﷺ) से सुना है कि लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना एक साल की मुस्तहब नमाज़ों और रोज़ों से बेहतर है।
(नहजुल बलाग़ा वसीयत 47)।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं कि .........अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जो हमारे दो दोस्तो के बीच सुलह सफ़ाई कराए, ऐ मोमिनों आपस में दोस्त रहो और एक दूसरे से मुहब्बत करो।

(उसूले काफ़ी, 72, पोज 187)
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*शेअर करके सद्का ऐ जारिया रवां करने में हिस्सेदार बनें*
*दुआओं में याद रखियेगा*
*Mûhãmmâd ŠhÄhïđ*
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हजरत नूह की कस्ती और कोव्वा


हजरत नूह की कस्ती और कोव्वा 🦅
एक बार गुफ्तगू के दौरान एक शक्श ने पूछा या अली अलैहिस्सलाम ये कोव्वा इतना डरा डरा सा और चौकन्ना क्यू रहता है
हजरत अली ने जवाब दिया कोव्वा उन परिंदो मै से है जिसे अल्लाह ने बे पनहा बहादुरी अता की थी मगर अफसोस जब तूफान नूह आया तो हर नेक मखलूक ने अल्लाह के नबी नूह के शफीने को नजात का जरिया बनाया यानी उनके कहने पर कस्ती में सवार हो गए जब ये तूफान थमा तो हर जानिब पानी ही पानी था और कस्ती पानी के सीने पर तैर रही थी जिस पर हर माखलोक का एक जोड़ा था
अल्लाह के नबी ने कोव्वे को। ये हुक्म दिया कि जाओ और जाकर देखो कि कहीं कोई खुश्की का टुकड़ा या ज़मीन नजर आए तो हमे आकर बताए ताकि हम कस्ती का रुख उसकी तरफ मोड़ दे कउव्वा वाहा से उड़ा और उड़ता गया खुश्की उसे नजर आई लेकिन वो वापस नहीं गया
बस इस पर हजरत नूह को जलाल आया और उन्होंने बारगाह। ए इलाही में ये फरियाद लगादी
या अल्लाह आज से आने वाली कयामत तक ये कोव्वा की नसल जब तक रूए ज़मीन पर रहे हमेशा डरी डरी और चोकती हुई रहे
#हजरत नूह की कस्ती और गधा 🐐
एक शक्श हजरत की बारगाह में आया और कहने लगा या अली इस गधे को अल्लाह ने इतना बेवकूफ क्यू बनाया है बस ये कहना था कि
इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया आए शक्श याद रखना अल्लाह ने किसी खलकत पे ज़ुल्म नहीं किया बस ये मखलूक ही है जो अपने आप पे ज़ुल्म करती है
तूफान नूह से पहले गधा बहुत ही चालक हुआ करता था जब तूफान ए नूह आया तो अल्लाह के नबी ने तमाम मखलूक के जोड़े को अपनी कस्ती में पनाह दी और उनकी गिजा को अपनी कस्ती में जमा किया
अल्लाह के नबी नूह ने सब जानवरो की गिजा रोज़ खाने के लिए एक मुकर्रर वक्त तक के लिए रखी थी
ताकि जब तक ये तूफान चले कोई जानवर भूक़ से। ना मरे लेकिन अफसोस गधा अपनी चालाकी और झूट के सबब दूसरे जानवरो की गिजा भी चोरी चोरी खा लिया करता था और सुभा जब हजरत नूह पूछते ये गिजा किसने खाई तो गधा झूट बुला करता था
बस अल्लाह के नबी की ज़ुबान से ये अल्फ़ाज़ अल्लाह की बारगाह में गए की। या अल्लाह जो जानवर ये गिजा चोरी करके खाता है तू उसे इतना बेवकूफ बना की फिर वो कभी चोरी ना कर सके
#हजरत नूह की कस्ती और कबूतर 🕊️
क्या आप जानते हो कबूतर के पैर लाल क्यू होते और उसके गले में सूनेरी हार नुमा धरी क्यू है
कस्ती ठेरने के बाद जब अल्लाह के नबी ने ज़मीन कि खबर लेने के लिए किसी को भेजने का इरादा क्या तो सबसे पहले मुर्गी ने अपना इरादा जाहिर क्या लेकिन हजरत नूह ने कोव्वे को भेजा जो वापस नहीं आया और मुरदा जानवर देख कर वहीं गिर गया
फिर हजरत ने कबूतर को भेजा तो कबूतर ज़मीन पर नहीं उतरा और एक जैतून की पत्ति अपनी चोंच में लेकर अगया हजरत नूह ने उससे कहा तुम ज़मीन पर नहीं उतरे जाओ और ज़मीन पर उतर के रूए ज़मीन की खबर लेकर आया
कबूतर फिर गया और मक्का मुकररमा की ज़मीन पर उतरा और देख लिया पानी मक्का की ज़मीन से खुस्क हो चुका है और शुरख रंग की मट्टी नमु दार हो गई है कबूतर जब ज़मीन पे उतरा तो सुर्ख रंग की मट्टी से उसके पैर रंगीन हो गए
और उसी हालत में हजरत नूह के पास वापस अगाया
इस पर हजरत नूह खुश हुए तो कबूतर ने अर्ज़ की या अल्लाह के नबी आप मेरे गले में एक सुर्ख रंग का तोक अता फरमा दे और मेरे पैरो को सुर्खी और सुकून से जीने का शरफ अता करे
अल्लाह के नबी हजरत नूह ने उस कबूतर के लिए वो सारी दुआ करदी जो उसकी मुराद थी और उसकी नसल में बरकत और सुकून की दुआ करी जिसे आज भी कबूतर सबसे सुकून के साथ रहने वाला पंछी बना और उसकी नसल भी बा बरकत है.

सीरते मुस्त़फ़ा ﷺ पार्ट - 1

सीरते मुस्त़फ़ा ﷺ

 पार्ट - 1

बिस्मिल्ला-हिर्रहमानिर्रहीम
मुह़म्मद मुस्त़फ़ा ﷺ नसब नामा :-
हुज़ूरे अक़्दस ﷺ का नसब शरीफ़ वालिदे माजिद की तरफ़ से ये है .?
1 - हज़रत मुह़म्मद ﷺ, 
2 - बिन अ़ब्दुल्लाह, 3 - बिन अ़ब्दुल मुत्तलिब, 4 - बिन हाशिम, 5 - बिन अ़ब्दे मनाफ़, 6 - बिन क़सी, 7 - बिन किलाब, 8 - बिन मुर्रह, 9 - का'ब, 10 - बिन लवी, 11 - बिन ग़ालिब, 12 - बिन फ़हर, 13 - बिन मालिक, 14 - बिन नज़र, 15 - बिन किनाना, 16 - बिन ख़ुज़ैमा, 17 - बिन मुदरिकह, 18 - बिन इल्यास, 19 - बिन मज़र, 20 - बिन नज़ार, 21 - बिन मअ़द, 22 - बिन अ़दनान।
और वालिदए माजिदा की तरफ़ से हुज़ूर ﷺ का नसब शरीफ़ ये है .?
1 - हज़रत मुह़म्मद ﷺ ,
2 - बिन आमिना, 3 - बिन्ते वह्ब, 4 - बिन अ़ब्दे मनाफ़, 5 - बिन ज़हरा, 6 - बिन किलाब, 7 - बिन मुर्रह।
हुज़ूर ﷺ के वालिदैन का नसब नामा "किलाब बिन मुर्रह" पर मिल जाता है और आगे चल कर दोनों सिल्सिले एक हो जाते हैं। "अ़दनान" तक आप का नसब नामा सह़ीह़ सनदों के साथ ब इत्तेफ़ाके मुअर्रिख़ीन साबित हैं इस के बाद नामों में बहुत इख़्तिलाफ़ है और हुज़ूर ﷺ जब भी अपना नसब नामा बयान फ़रमाते थे तो "अ़दनान" ही तक  ज़िक्र फ़रमाते थे।
📚 بخاری ج - 1، ص - 543 ،
मगर इस पर तमाम मुअर्रिख़ीन का इत्तेफ़ाक है कि "अ़दनान" हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की औलाद में से हैं, और हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) हज़रत इब्राहिम (अलैहिस् सलातो व अस्सलाम) के फ़रज़न्द (बेटे) है। हुज़ूर ﷺ का ख़ानदान व नसब नजाबत वह शराफ़त में तमाम दुनिया के ख़ानदानों से अशरफ़ व आ'ला और यह वह ह़क़ीकत है कि आप ﷺ के बद तरीन दुश्मन कुफ्फ़ारे मक्का भी कभी इस का इंकार ना कर सके। चुनांचे अबू सुफ़्यान ने जब वह कुफ़्र की ह़ालत में थे बादशाहे रूम हरक़िल के भरे दरबार में इस ह़क़ीकत का इंकार किया कि या'नी नबी ﷺ आ'ला ख़ानदान हैं। हालांकि उस वक्त वह आप ﷺ के बद तरीन दुश्मन थे। और चाहते थे कि अगर ज़रा भी कोई गन्जाइश मिले तो आप ﷺ की ज़ाते पाक पर कोई ऐब लगाकर बादशाह रूम की नज़रों से आप का वक़ार गिरा दें।
📚 सीरते मुस्त़फ़ा ﷺ , सफा - 49 - 50,
इसके आगे का वाक़िया, पार्ट - 2 में, कल पोस्ट (बयान) किया जाएगा , इंशा अल्लाह...

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आप सभी से गुजारिश है पोस्ट अच्छी लगे तो और दूसरे ग्रुप में शेयर कर दे तके सभी मुसलमान इस पोस्ट को पद सके
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हम मुहम्मद ﷺ के चाहने वाले हैं.

सच्ची हिकायत (पोस्ट-2)

★ सच्ची हिकायत (पोस्ट-2)
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★ Bismillah Hir Rahemanir Rahim

 ••मुकद्दस पानी••
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एक मकाम पर हुजुर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) वुजु फरमाया तो हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) ने वुजू से बचा हुअा पानी ले लिया। दीगर (और दुसरे) सहाबा-ए-किराम ने जब देखा की हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) के पास हुजुर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) के वुजू का बचा हुआ पानी है। तो हजरत बिलाल (रदी अल्लाहु अन्हु) की तरफ दौड़े और मुकद्दस पानी को हासिल करने की कोशिश करने लगे।जिस किसी को उस पानी से थोड़ा पानी मिलता वह उस पानी को अपने मुंह पर मल लेते। और जिस किसी को न मिल सका तो उसने किसी दुसरे के हाथ से तरी लेकर मुंह पर हाथ फेर लेते।
{मिसकात शरिफ, पेज-65,}

सबक।
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सहाबा-ए-किराम (रदी अल्लाहु अन्हु) को हर उस चीज से जिसे हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) से कोइ निस्बत हासिल हो गई ।
मोहब्बत व प्यार था और उसे वाजिब-ए-ताजीम समझते थे। उस से बरकत हासिल करते थे। मालूम हुआ की तबार्रूक कोइ नयी बात और बिद्दत नही बल्की सहाबा-ए-किराम को भी मालुम था।
ये भी मालुम हुवा की अपने वुजु के बचे हुए पानी को बा-तौर तबार्रूक लेकर अपने चेहरो पर मल लेने का हुक्म हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) ने भी नही दिया मगर सहाबा-ए-किराम फिर भी ऐसा करते थे । उनकी मोहब्बत की वजह से था जो ऐन इमान है।
इसी तरह हुजूर (सल्ललल्लाहु अलैही वसल्लम) ने जुलुस, मिलाद, महफिल-ए-मिलाद अजान मे नाम-ए-पाक सुनकर अंगुठे चुमने का हुक्म अगर न भी दिये हो तो भी जो शख्स मोहब्बत की वजह से ऐसा करेगा ईनशाअल्लाह-वा-ताआला सहाबा-ए-किराम के सदके मे सवाब पायेगा।
हम मुहम्मद ﷺ के चाहने वाले हैं.

खूबी

खूबी

रसूल अल्लाह की खिदमत में एक शख़्स हाज़िर हुआ।
कहा "या रसूल अल्लाह मै अपनी बीवी को तलाक देना चाहता हूं ।

रसूल अल्लाह ने फ़रमाया "क्यूं"
उस शख़्स ने कहा या रसूल अल्लाह"बड़ी मुहदराज है,
झगड़ती बहुत है ,बोलती बहुत है,,मेरा फलां काम नहीं करती, मुझे वक्त पर खाना नहीं देती, या रसूल अल्लाह बिना इजाजत घर से निकल जाती है,,,,,

रसूल अल्लाह ने कहा, तेरी बीवी में सारी ही खामी है या कुछ खूबी भी हैं..
उसने कहा  "या रसूलअल्लाह वो मेरा बिस्तर बड़ा पाक रखती हैं सारी कोताही या एक तरफ़ मगर उसने कभी मेरे बिस्तर को गंदा नहीं किया।
"या रसूल अल्लाह किरदार की बड़ी पाक साफ है परदे की पाबंद है किसी गैर मेहरम की जुर्रत नही कि बात कर जाए,
ये खूबी है जो मुझे बड़ी पसंद है""""""

रसूल अल्लाह ने फ़रमाया तो फिर उसकी सारी कोताहियो को माफ कर और उसकी इस खूबी से मुहब्बत कर.....
क्योंकि अल्लाह ने हर इंसान को कोई ना कोई खूबी दी है।
हम मुहम्मद ﷺ के चाहने वाले हैं.

सच्ची हिकायत (पोस्ट-1)

सच्ची हिकायत (पोस्ट-1)

BismillahHir Rahemanir Rahim

 रसुलल्लाह ﷺ का पैगाम एक मजूसी के नाम

 शीराज के एक बुजुर्ग हजरत फाश फरमाते हैं कि मेरे यहां एक बच्चा पैदा हुवा !
मेरे पास खर्च करने के लिए कुछ भी न था ! वह मौसम इन्तीहाइ सर्द था, मै इसी फिक्र मे सो गया तो ख्वाब मे हुजूर ﷺ की ज्यारत नसीब हुइ !
आपने फरमाया : कया बात हैं??
*मैने अर्ज किया : हुजुर खर्च के लिए मेरे पास कुछ भी नही ! बस इसी फिक्र मे था,
हुजूर ﷺ ने फरमाया : दिन चढ़े तो फला मजूसी के घर जाना और उस से कहना की रसुललल्लाह ﷺ ने तुझे कहा है की बिस दिनार तुझे दे दे,

हजरत फाश सुबह उठे तो हैरान हूए की एक मजूसी के घर कैसे जाऊं और रसुललल्लाह का हुक्म वहां कैसे सुनाऊं ??
फिर यह बात भी दूरूस्त है की ख्वाब मे हुजूर नजर आये तो वह हुजूर ही होते हैं !
इसी शश-व-पंज मे वह दिन भी गुजर गया !
*दुसरी रात फिर हुजुर कि ज्यरत हुई !
हुजुर ﷺ ने फरमाया : तुम इस ख्याल को छोड़ दो और उस मजूसी के पास मेरे पैगाम पहुंचा दो !
*चुनांचे हजरते फाश सुबह उठे और उस मजूसी के घर चल पड़े। क्या देखते है की वह मजूसी अपने हाथ मे कुछ लिए हुए दरवाजे पर खड़ा है !
जब उनके पास पहुंचा तो (चुकी वह उनको जानता न था ! यह पहली मर्तबा उनके पास आए थे) इस लिए शर्मा गये !
 *वहमजूसी खुद ही बोल पड़ा बड़े मियां ! कया कुछ हाजत है ??
*हजरत फाश बोले हां! मुझे रसुललल्लाह ﷺ ने तुम्हारे पास भेजा है कि तुम मुझे बिस दिनार दे दो !
 *उसमजुसी ने अपना हाथ खोला और कहे ले लिजीए ! यह बिस दिनार मैने आप ही के लिए निकाल कर रखे थे ! आपकी राह देख रहा था!
*हजरत फाश ने वह दिनार लिए और उस मजूसी से पुछा भाइ तो भला रसुललल्लाह ﷺ को ख्वाब मे देखकर यहां आया हूं ! मगर तुझे कैसे मेरे बारे मे कैसे इल्म हो गया??

*वह बोला रात को इस शक्ल व सुरत के एक नुरानी बुजूर्ग को ख्वाब मे देखा है जिन्होने फरमाया की एक शख्स
साहिबे हाजत है और वह कल तुम्हारे पास पहुंचेगा उसे दिनार दे देना !
*चुनांचे मै यह बिस दिनार लेकर तुम्हारा ही इन्तेजार मे था
हजरत फाश ने जब उसकी जबानी रात को मिलने वाले नुरानी बुजुर्ग का हुलीया सुना तो वह हुजूर ﷺ का था,
चुनांचे हजरत फाश ने उससे कहा की यही हुजूर ﷺ हैं! वह मजूसी यह वाकिया सुनकर थोड़ी देर ठहरा और फिर कहा मुझे अपने घर ले चलो !
*चुनांचे वह हजरत फाश के घर आया और कलीमा पढ़कर मुस्लमान हो गया फिर उसकी बिवी बहन और उसकी औलाद भी मुस्लमान हो गया,
{शवहिदुल हक सफा-166}

सबक,

हमारे हुजूर ﷺ की नजरे रहमत जिस पर पड़ जाये उसका बेड़ा पार हो जाता है!
यह भी मालूम हुवा कि हुजूर ﷺ अपने मोहताज गुलामो कि फरियाद सुनते है और विसाल शरिफ के बाद भी मोहताजो की मदद फरमाते
हम मुहम्मद ﷺ के चाहने वाले हैं.